उत्तराखंड डेली न्यूज़ :ब्योरो
भारत में 6.65 लाख गांव हैं, जिनमें 2.68 लाख ग्राम पंचायतें और ग्रामीण स्थानीय निकाय हैं, जो देश के ग्रामीण परिदृश्य का आधार हैं। पंचायतें ग्रामीण विकास को गति दे ही रही हैं, आम आदमी की भी ताकत बन रही हैं।भारत में पंचायत को सुशासन की दृष्टि से देखें, तो लोक सशक्तीकरण इसकी पूर्णता है और लोक विकेंद्रीकरण की नजर से देखें, तो यह एक ग्रामीण स्वशासन की परिपाटी की पूर्ति है जो ग्रामीण विकास के लिए कहीं अधिक जरूरी है। इतना ही नहीं यह गांधी के ग्राम-स्वराज के सपने को भी बल देता है। सुशासन शांति और खुशहाली का परिचायक है। जबकि पंचायत एक ऐसी संस्था है जो ग्रामीण स्वराज को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में 6.65 लाख गांव हैं, जिनमें 2.68 लाख ग्राम पंचायतें और ग्रामीण स्थानीय निकाय हैं, जो देश के ग्रामीण परिदृश्य का आधार हैं। पंचायतें ग्रामीण विकास को गति दे ही रही हैं, आम आदमी की भी ताकत बन रही हैं।केंद्रीय बजट 2025-26 में ग्रामीण विकास को रफ्तार देने और केंद्रित कार्यक्रमों तथा निवेशों के जरिए समृद्धि बढ़ाने के उद्देश्य से कई प्रमुख पहल की गई। मसलन वर्ष 2028 तक के लिए जल जीवन मिशन, ब्राडबैंड सुविधा, जिसका लक्ष्य यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सभी सरकारी माध्यमिक विद्यालयों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक इंटरनेट पहुंच उपलब्ध हो तथा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाया जाए। इसके अतिरिक्त, भारतीय डाक उद्यमियों, सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम यानी एमएसएमई और स्वयं सहायता समूहों का समर्थन करने वाले एक प्रमुख सार्वजनिक ‘लाजिस्टिक्स’ संगठन के रूप में विकसित करना भी लक्ष्य है। ग्रामीण समृद्धि एवं अनुकूलन कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं, युवा किसानों, हाशिए पर पड़े समुदायों और भूमिहीन परिवारों को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करना है।
लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का परिचायक है पंचायत
पंचायत लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का परिचायक है और सामुदायिक विकास कार्यक्रम इसकी नींव है। पंचायत जैसी संस्था की बनावट कई प्रयोगों और अनुप्रयोगों का भी नतीजा है। सामुदायिक विकास कार्यक्रम का विफल होना और इसके बाद बलवंत राय मेहता समिति का गठन फिर वर्ष 1957 में उसी की रपट पर इसका मूर्त रूप लेना देखा जा सकता है। गौरतलब है कि जिस पंचायत को राजनीति से परे और नीति उन्मुख सजग प्रहरी की भूमिका में समस्या दूर करने का एक माध्यम माना जाता है, आज वही कई समस्याओं से जकड़ी हुई है। जिस पंचायत ने सबसे नीचे के लोकतंत्र को कंधा दिया हुआ है, वही कई जंजालों से मुक्त नहीं है, चाहे वित्तीय संकट हो या उचित नियोजन की कमी या फिर अशिक्षा, रूढ़िवादिता तथा पुरुष वर्चस्व के साथ जाति और ऊंच-नीच के पूर्वाग्रह ही क्यों न हों। यह समस्या पिछले तीन दशकों में घटी तो है और इसी पंचायत ने यह सिद्ध भी किया है कि उसका कोई विकल्प नहीं है।
