उत्तराखंड डेली न्यूज़ :ब्योरो
उत्तरकाशी में आपदा के बाद धराली और हर्षिल गांव का सड़क से संपर्क टूट गया है। ऐसे में राशन और गैस सिलेंडर की आपूर्ति ठप है। लोग कंधों पर बोझ लादकर आंसुओं को दबाते हुए जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं।उत्तरकाशी में आई भीषण आपदा ने धराली और हर्षिल गांव को सड़क मार्ग से तोड़ दिया है, लेकिन इन गांवों के लोगों के हौसले को नहीं तोड़ पाई। सड़कों के बंद होने से राशन और गैस सिलेंडर की सप्लाई रुक गई है और अब हर कदम पर जीवन की जंग लड़ते ये लोग कंधों पर बोझ लिए आंसुओं को छुपाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। उनकी मेहनत और दर्दभरी उम्मीद हर उस दिल को छू रही है, जो इस संकट को देख रहा है।आपदा ने छीना सब कुछ,उत्तरकाशी में हाल ही में आई आपदा ने धराली और हर्षिल गांव को सड़क मार्ग से अलग-थलग कर दिया। मिट्टी और पत्थरों ने रास्तों को लील लिया, जिसने इन गांवों की जिंदगी को भी थाम लिया।आंसुओं के साथ कंधों पर बोझ,सड़कों के बंद होने से राशन और गैस सिलेंडर की आपूर्ति ठप हो गई। अब लोग कंधों पर भारी बोरियां और सिलेंडर लादकर अपने घरों की ओर बढ़ रहे हैं। हर कदम में उनकी तकलीफ और जज्बा साफ झलकता है। पिछले दस दिनों से नमक, तेल, मसाले, चीनी और चाय तक की कमी से जूझते ये लोग सब्जी दुकानों के बंद होने की मार भी झेल रहे हैं। ज्यादातर लोग सरकारी राहत पर निर्भर हैं, लेकिन रास्ते न खुलने से यह सहारा भी कमजोर पड़ता जा रहा है। शासन-प्रशासन का ध्यान धराली रेस्क्यू पर होने से इन गांवों को पूरी मदद नहीं मिल पा रही।
राशन संकट की बढ़ती चिंता
पांच अगस्त की आपदा ने धराली-हर्षिल को सबसे गहरा घाव दिया, लेकिन आसपास के क्षेत्र जैसे झाला, जसपुर, पुराली, बगोरी, मुखवा भी इससे अछूते नहीं हैं। डबरानी के पास गंगोत्री हाईवे के टूटने से हर्षिल घाटी के आठ गांवों की करीब 12 हजार आबादी पिछले दस दिनों से सड़क संपर्क से वंचित है। झाला के सरकारी गोदाम में अब सिर्फ 150 क्विंटल चावल और उतना ही गेहूं बचा है, जो राहत शिविरों और बचाव टीमों के लिए आपूर्ति का एकमात्र स्रोत है। अगर जल्द आपूर्ति नहीं चली तो राशन का संकट और विकराल हो सकता है। हाईवे खुलने पर अगले छह माह का राशन बांटने की योजना है, लेकिन तब तक इन लोगों की जिंदगी अनिश्चितता और दर्द के बीच झूल रही है।
