उत्तराखंड डेली न्यूज़: ब्योरो
बाबा नीब करौरी महाराज को कंबल चढ़ाने के बाद घर में रखने से बीमारी और क्लेश दूर होते हैं!नैनीताल: भारत की धरती पर समय-समय पर ऐसे संत-महापुरुषों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपनी तपस्या, भक्ति और करुणा से लाखों-करोड़ों लोगों का जीवन बदल दिया. नैनीताल के कैंची धाम के बाबा नीब करौरी महाराज भी उन्हीं संतों में से एक हैं. जिनकी ख्याति केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैली हुई है. उनका जीवन सरलता, सेवा और भक्ति का प्रतीक था. उनका एक विशिष्ट और प्रसिद्ध रूप था-कंबल ओढ़े हुए बाबा.
मंदिर समिति के भुवन बिष्ट बताते हैं कि बाबा नीब करौरी महाराज अक्सर कंबल पहना करते थे. जिसके चलते अब भक्त बाबा को कंबल समर्पित करते हैं. मान्यता है कि बाबा को चढ़ाए गए कंबल को वापस घर ले जाने के बाद घर से दुख दरिद्रता क्लेश दूर होते हैं. इतना ही नहीं, लंबे समय से गंभीर रूप से ग्रसित बीमारियों को भी बाबा क्षण में दूर करते हैं. बाबा नीब करौरी महाराज को अक्सर एक पुराने, फटे हुए भूरे रंग के कंबल में लिपटे हुए देखा जाता था. उन्होंने अपने जीवन में सादा जीवन उच्च विचार को अपनाया और भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहकर भी लोगों को दिव्यता और आध्यात्मिकता का अनुभव कराया. यही कारण है कि आज भी उनके भक्त उन्हें कंबल समर्पित करना अपना सौभाग्य मानते हैं!नीब करौरी बाबा के मंदिरों में भक्त अक्सर कंबल चढ़ाते हैं. यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से भी गहरी है. ऐसा माना जाता है कि कंबल, बाबा को अर्पित करने से व्यक्ति के दुख-दर्द दूर होते हैं. मानसिक शांति मिलती है और शारीरिक बीमारियों से मुक्ति मिलती है!भक्तों का विश्वास है कि बाबा जिस वस्त्र को जीवनभर पहनते रहे, वही वस्तु उन्हें चढ़ाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है. यह कंबल चढ़ाना एक प्रकार से बाबा की उपस्थिति का अनुभव करना है! कंबल एक गर्माहट देने वाली वस्तु है. बाबा की कृपा भी ठीक उसी प्रकार अपने भक्तों को सुरक्षा, आराम और राहत प्रदान करती है. भक्तों का अनुभव है कि जब उन्होंने बाबा के मंदिर में चढ़ाए गए कंबल को घर लाकर उड़ाया तो उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन हुए. कई लोगों ने अपने शारीरिक रोगों में सुधार देखा तो कुछ ने मानसिक परेशानियों से राहत महसूस की. ऐसा माना जाता है कि बाबा की कृपा उस कंबल में समाहित हो जाती है और उसे ओढ़ने से बाबा की ऊर्जा व्यक्ति तक पहुंचती है!खुर्द पहनने वाले संत: बाबा नीब करौरी महाराज सदा एक ही वस्त्र में रहते थे. एक साधारण खुर्द और भूरे रंग का कंबल! वे किसी भी आडंबर से दूर रहते थे. उनका यही सरल जीवन ही उन्हें महान बनाता है. वे कहते थे, सेवा ही धर्म है. उन्होंने कभी किसी को धर्म-जाति से नहीं देखा. केवल उसके अंतर्मन की शुद्धता को महत्व दिया. उनके आश्रमों में आज भी वही सादगी और सेवा की भावना देखने को मिलती है! चाहे वह उत्तराखंड का कैंची धाम हो, वृंदावन हो या अमेरिका में स्थापित उनके भक्तों द्वारा निर्मित केंद्र. सभी जगह एक ही भावना है. सेवा, प्रेम और विश्वास!कंबल चढ़ाने की विधि: बाबा को कंबल चढ़ाने के लिए कोई जटिल प्रक्रिया नहीं है. श्रद्धालु एक नए या अच्छे हालत में रखा कंबल लेकर बाबा के मंदिर में अर्पित करते हैं. इसे श्रद्धा और विनम्रता के साथ बाबा के चरणों में रखा जाता है. कई लोग बाबा के समक्ष कंबल को अर्पण कर उसकी परिक्रमा करते हैं और फिर उसे वापस ले जाते हैं!
