उत्तराखंड डेली न्यूज़: ब्योरो
भारतीय तारीख में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को देश की हालात पर कई लंबे और जानकारी से भरपूर लेख पढ़ने को मिली हैं, जिनमें देश के अलग-अलग वक्त और हिस्सों के इतिहास का हवाला दिया गया है. लेकिन सच यह है कि हममें से ज्यादातर भारतीय अपने हाल की तारीख से भी अनजान हैं, पुरानी तारीख की तो बात ही छोड़िए. आज हम आपको ऐसी ही एक खूबसूरत यूटी की दिलचस्प कहानी बताएंगे।वहीं, 28 जुलाई 1954 को एजीडी के वॉलंटियर नरोली पहुंचे और पुर्तगाली पुलिसकर्मियों से सरेंडर करने का दरख्वास्त किया. उन्होंने ऐसा ही किया. यूएफजी, एजीडी और आरएसएस के भारत समर्थक ‘हमलावरों’ के हाथों गांव-गांव गिरते गए. 2 अगस्त 1954 को सिलवासा के ‘पतन’ के साथ ही दादरा और नगर हवेली एक आजाद मुल्क बन गया! जबकि 1954 से 1961 तक, ‘आजाद दादरा और नगर हवेली की वरिष्ठ पंचायत’ का बोलबाला रहा और मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) तक पहुंचा. अप्रैल 1960 में ICJ ने फैसला सुनाया कि दादरा और नगर हवेली पर पुर्तगाल का संप्रभु अधिकार है. इसके बाद, साफतौर से इस विवादास्पद स्पेशल स्टेटस के स्थायी समाधान का वक्त करीब आ गया था. चिंतित DNHI वासियों ने भारत से मदद मांगी और आईएएस अफसर केजी बदलानी को एडमिनिस्ट्रेटर बनाकर भेजा गया. इसके बाद सीनियर पंचायत ने बदलानी को प्रधानमंत्री नियुक्त किया, जिससे वे नेहरू के समकक्ष हो गए और 11 अगस्त 1961 को भारत में विलय के दस्तावेज़ पर कानूनी तौर पर साइन करने वाले बन गए!
भारत को मिली जबरदस्त तजुर्बा
1961 में जब गोवा भारत में मिला और दादरा-नगर हवेली भी जुड़ा तो पंडित नेहरू खुश थे. लेकिन दुनिया के देशों ने इसे 1974 में ही मान्यता दी. तब तक नेहरू समझ गए थे कि संयुक्त राष्ट्र में इस मामले को नहीं ले जाना चाहिए, वरना शायद हमें संविधान में एक और नया प्रावधान जोड़ना पड़ता. हालांकि, देश के नक्शे पर ये कोई पहली इस तरह की जगह नहीं है. पांडिचेरी और ऑरोविले की भी आज़ादी और विरोध की अपनी कहानियां हैं, जैसे सिक्किम और गोवा की. इन सबके लिए अलग और समझदारी भरे हल निकाले गए. गौर करें तो पिछले सात दशकों में भारत सरकार को खुदमुख्तारी ( संप्रभुता ) और शासन के ऐसे मामलों में जबरदस्त तजुर्बा और सफलता मिली है।
