उत्तराखंड डेली न्यूज़: ब्योरो
मान्यता है कि नैमिषारण्य की हनुमाढ़ गढ़ी वही जगह है जहां अहिरावण का वध करने के बाद भगवान राम और लक्ष्मण के साथ हनुमान जी पाताल से निकले थे।नैमिषारण्य का पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व अतुल्य है। इस जगह का वर्णन वेद, पुराण, महाभारत और दूसरे धर्मग्रंथों में भी है। गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस में लिखा है, तीरथ वर नैमिष विख्याता, अति पुनीत साधक सिधि दाता। इसी नैमिषारण्य की पवित्र भूमि के टीले पर हनुमानगढ़ी मंदिर स्थित है। यह टीला इस प्राचीनतम मंदिर की भव्यता को बढ़ाने का काम करता है।यहां पर हनुमान जी की विशालकाय प्रतिमा है। मान्यता है कि यहां दर्शन-पूजन से श्रद्धालुओं को शनि, राहु और केतु ग्रहों के प्रकोप से छुटकारा मिलता है। मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साल भर मंत्रियों, नेताओं, प्रशासनिक एवं न्यायिक अधिकारियों, साधु-संतों के साथ ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। हनुमान जयंती और ज्येष्ठ (जेठ) में तो यहां हर दिन श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है। हर दिन भंडारों का आयोजन होता है। यहां सीतापुर ही नहीं बल्कि दूसरे प्रांतों से भी हनुमान भक्त दर्शन-पूजन के लिए आते हैं।यह है नैमिषारण्य हनुमानगढ़ी का महात्म्य
नैमिषारण्य की हनुमान गढ़ी देश के प्रसिद्ध तीन हनुमान गढ़ी में एक है। अयोध्या स्थित हनुमान गढ़ी में हनुमानजी की बैठी हुई प्रतिमा स्थापित है, जबकि प्रयागराज में संगम तट पर हनुमानजी लेटी हुई मुद्रा में है। नैमिषारण्य की हनुमान गढ़ी मे उनकी विशाल दक्षिणमुखी प्रतिमा स्थापित है। नैमिषारण्य हनुमानगढ़ी के महंत बजरंग दास जी बताते हैं कि इस हनुमान गढ़ी की मान्यता बड़े हनुमान मंदिर के रूप में भी है।मान्यता है कि भगवान श्रीराम और रावण के बीच युद्ध में अहिरावण ने जब राम तथा लक्ष्मण की बलि देने के लिए उनका अपहरण किया था, तब हनुमान जी ने पातालपुरी जाकर अहिरावण का वध किया और राम और लक्ष्मण को मुक्त कराया था। इसके बाद बजरंगबली राम और लक्ष्मण को अपने कंधों पर बिठाकर इसी स्थान पर धरती फाड़कर निकले थे और यहीं से दक्षिण दिशा अर्थात लंका की ओर प्रस्थान किया।माना जाता है कि उसी समय हनुमान जी की दक्षिणमुखी मूर्ति प्रकट हुई। यह मंदिर दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर के नाम से प्रचलित है। हनुमान जी की दक्षिणमुखी यह मूर्ति अत्यंत दुर्लभ है। यहां पर हनुमानजी के कंधों पर राम और लक्ष्मण विद्यमान हैं और पैरों के नीचे अहिरावण। इस मंदिर के पास ही पांडव किला है। मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यहां भगवान हनुमान की पूजा-आराधना की थी, जिसके चलते इसका नाम पांच पांडव किला पड़ा।
