उत्तराखंड डेली न्यूज़ :ब्योरो
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में जहां एक ओर प्राकृतिक सुंदरता हर किसी को आकर्षित करती है, वहीं दूसरी ओर यहां के जंगलों में मिलने वाले जंगली फल भी किसी खजाने से कम नहीं हैं. ये फल न सिर्फ स्वाद में लाजवाब होते हैं, बल्कि अपने औषधीय गुणों के कारण सेहत के लिए भी बेहद लाभकारी माने जाते हैं. स्थानीय संस्कृति और पारंपरिक जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बन चुके ये फल आज भी बाजार से नहीं, सीधे प्रकृति की गोद से मिलते हैं।उत्तराखंड की पहाड़ियों में गर्मियों में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की जुबान पर एक ही नाम होता है, काफल. यह छोटा लाल फल अपने खट्टे-मीठे स्वाद के कारण बेहद लोकप्रिय है. हालांकि यह बाजारों में नहीं मिलता, लेकिन जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी भरमार होती है. स्थानीय लोग इसे इकट्ठा करके परिवार और मेहमानों को परोसते हैं. मान्यता है कि काफल में आयरन, विटामिन-C और एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर मात्रा में होते हैं, जो शरीर को ऊर्जा और गर्मी से राहत देते हैं. बच्चों के लिए यह न केवल स्वाद की चीज होती है, बल्कि जंगलों में घूमने और फल तोड़ने का भी एक रोचक अनुभव होता है. कई लोकगीतों में भी काफल का जिक्र होता है, जो इस फल को सिर्फ खाने की चीज नहीं, बल्कि पहाड़ी संस्कृति का हिस्सा बनाता है।हिसालू पहाड़ी क्षेत्रों में मिलने वाला एक और दुर्लभ जंगली फल है, जिसे अक्सर ‘जंगली रसभरी’ भी कहा जाता है. इसका मीठा स्वाद और रसदार बनावट हर किसी का मन मोह लेती है. यह खासतौर पर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगता है और इसकी उपलब्धता बहुत सीमित होती है. स्थानीय लोग इसे ऊर्जा का प्राकृतिक स्रोत मानते हैं. यह फल न केवल स्वादिष्ट होता है बल्कि एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन-C और फाइबर से भरपूर होता है, जो पाचन क्रिया और त्वचा के लिए लाभकारी है. गर्मियों में हिसालू खाना शरीर को प्राकृतिक ठंडक देता है. पर्वतीय परिवार इसे जंगल से इकट्ठा करते हैं और बच्चों के टिफिन में डालते हैं या स्नैक की तरह खाते हैं. इसकी खासियत यह है कि यह किसी भी बाजार में नहीं बिकता, यह सिर्फ प्रकृति की गोद से ही मिल सकता है।
