उत्तराखंड डेली न्यूज़: ब्योरो
वैज्ञानिकों के अनुसार, वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे भविष्य में जल संकट का खतरा बढ़ रहा है।हिमालय को ‘तीसरा ध्रुव’ कहा जाता है, क्योंकि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के बाद यह सबसे बड़ा हिमनद (ग्लेशियर) क्षेत्र है। दक्षिण एशिया के सात देशों के करीब 75 करोड़ लोगों की जलापूर्ति सीधे हिमालय पर निर्भर करती है। लेकिन, वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन ने इस जीवनदायिनी पर्वत शृंखला पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। आर्य भट्ट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध संस्थान (एरीज) नैनीताल के निदेशक एवं वरिष्ठ वायुमंडलीय वैज्ञानिक प्रो. मनीष कुमार नजा ने ‘हिन्दुस्तान’ से बातचीत में इस पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं, कुछ तो गायब भी हो चुके हैं। अगर हालात नहीं सुधरे तो आने वाली पीढ़ियों के सामने पानी संकट होगा। कोयला आधारित बिजली संयंत्र, ऑटोमोबाइल, उद्योग, पारंपरिक कृषि पद्धति और जंगल की आग वायु प्रदूषण के बड़े कारक हैं। ग्रामीण इलाकों में खाना पकाने से लेकर गर्म करने के लिए बायोमास का इस्तेमाल और फसल के अवशेष को आग लगाना भी गंभीर समस्या है। उनके अनुसार, इससे उत्सर्जित ब्लैक कार्बन बर्फ पर सूर्य की गर्मी को और अधिक सोखता है, जिससे हिमनद तेजी से पिघलते हैं।
मानसून के चक्र पर भी पड़ रहा है असर
हिमालय केवल पानी का भंडार ही नहीं, एशियाई मानसून को नियंत्रित करने वाला प्राकृतिक प्रहरी भी है। लेकिन, बादल बनने और बिगड़ने पर असर डालने वाले एरोसोल और गैसें मानसून के सटीक अनुमान को बेहद कठिन बना रही हैं। सिर्फ भारत या दक्षिण एशिया ही नहीं, बल्कि दक्षिणी यूरोप और उत्तरी अफ्रीका का वायु प्रदूषण भी पहुंच रहा है। यह हिमालय को गहराई से प्रभावित कर रहा।
विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन जरूरी
प्रो. नजा का कहना है कि विकास और औद्योगीकरण तरक्की के लिए जरूरी हैं। पर, इस दौड़ में पर्यावरण स्वच्छ रहे। हिमालय की रक्षा करना हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए सबसे बड़ा उपहार होगा।
सलाह: अब भारतीय अवलोकन की जरूरत
एरीज नैनीताल के अध्ययन से यह साफ है कि ग्रीन हाउस गैसें बढ़ रही हैं। वैश्विक सैद्धांतिक अनुमान में कई बार आंकड़े पक्षपातपूर्ण होते हैं। इसलिए, भारतीय भू-आधारित और उपग्रह अवलोकन अत्यंत जरूरी है।
