उत्तराखंड डेली न्यूज: ब्योरो
देहरादून में प्रस्तावित रिस्पना-बिंदाल एलिवेटेड रोड को लेकर कई सामाजिक संगठन विरोध में आ गए हैं। प्रोजेक्ट के खिलाफ उत्तराखंड इंसानियत मंच और उत्तराखंड महिला मंच ने संयुक्त रूप से पदयात्रा शुरू की। पहले चरण में यह पदयात्रा तीन दिन तक रिस्पना किनारे की बस्तियों में निकाली जाएगी।उसके बाद बिंदाल के किनारे की बस्तियों में भी पदयात्रा निकाली जाएगी। बता दें कि इससे पहले समाजिक संगठनों ने केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को पत्र लिखा है। पत्र में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से बिंदाल-रिस्पना एलिवेटेड रोड प्रोजेक्ट को न शुरू करने की गुजारिश की गई है।पदयात्रा की शुरुआत राजीवनगर पुल के पास से की गई। राजीवनगर, भगतसिंह कालोनी और पूरन बस्ती सहित कई बस्तियों से होकर पहले दिन की पदयात्रा संजय कॉलोनी, इंदर रोड के पुल पर समाप्त हुई। गले में एलिवेटेड रोड के विरोध वाले नारे लिखी तख्तियां लटकाए पदयात्री नारे लगाते और जनगीत गाते हुए आगे बढ़े। बड़ी संख्या में बस्तियों के लोग भी पदयात्रा में शामिल हुए। इस दौरान करीब 6 जगहों पर नुक्कड़ सभाएं भी की गई।नुक्कड़ सभाओं में पदयात्रियों के साथ ही बस्तियों में रहने वाले लोगों ने भी अपनी बात रखी। बस्ती वालों का कहना था कि उन्होंने जिन्दगी भर की कमाई अपने लिए छत बनाने में लगा दी है और अब सरकार उन्हें बेघर करना चाहती है। लोगों का कहना था कि यदि सरकार को एलीवेटेड रोड बनानी है तो पहले उनके रहने की व्यवस्था की जाए। कुछ लोगों का कहना था कि वे किसी भी हालत में अपने घर नहीं छोड़ेगे।पदयात्रा में शामिल उत्तराखंड इंसानियत मंच और उत्तराखंड महिला मंच के लोगों ने कहा कि यदि सभी मिलकर इस लड़ाई को लड़ें तो बस्तियों को उजड़ने से बचाया जा सकता है। वक्ताओं का कहना था कि सरकार ने इन बस्तियों में बिजली, पानी और सीवर जैसी सुविधाएं दी हैं। लोगों से हाउस टैक्स भी वसूला जा रहा है। लेकिन, आज इन बस्तियों को अवैध कहा जा रहा है। आम लोगों के मन में बस्तियों में रहने वाले लोगों के खिलाफ ऐसी नफरत भर दी गई है कि लोग बस्तियों को उजाड़ने का समर्थन कर रहे हैं। यह इस देश के संविधान और देश की परंपराओं के खिलाफ है।बता दें कि देहरादून शहर को जाम से मुक्त करने और मसूरी की राह आसान बनाने के लिए रिस्पना और बिंदाल नदियों के ऊपर से लगभग 26 किलोमीटर लंबा एक ऊंचा मार्ग (एलिवेटेड कॉरिडोर) तैयार करने का प्लान है। लेकिन इसके पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों के कारण इसका विरोध भी हो रहा है।
