उत्तराखंड डेली न्यूज़: ब्योरो
धर्म, परंपरा और प्रकृति का अद्वितीय संगम इन दिनों भारत के प्रथम गांव माणा में देखने को मिल रहा है। पुष्कर कुंभ। यह हर साल किसी न किसी एक प्रमुख भारतीय नदी के किनारे आयोजित होता है। जब बृहस्पति किसी विशेष राशि में प्रवेश करते हैं। बृहस्पति ग्रह मिथुन राशि में प्रवेश कर चुके हैं, जिसके चलते सरस्वती नदी के तट पर पुष्कर कुंभ का आयोजन किया गया है। बदरीनाथ धाम से महज़ तीन किलोमीटर आगे स्थित भारत के पहले गांव माणा में इन दिनों एक दिव्य और दुर्लभ आध्यात्मिक आयोजन हो रहा है- पुष्कर कुंभ। अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम पर केशव प्रयाग में 12 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद फिर से कुंभ की शुरुआत हुई है। इस आयोजन का खास महत्व है। यह दक्षिण भारत की वैष्णव परंपरा से जुड़ा है, जिसमें विशेष रूप से दक्षिण भारत के श्रद्धालु भाग लेते हैं और इस बार भी वह बड़ी संख्या में यहां पहुंच रहे हैं। धर्माधिकारियों का मानना है कि पुष्कर कुंभ जैसे आयोजनों के माध्यम से दक्षिण और उत्तर भारत की वैदिक परंपराएं एक-दूसरे में समाहित होती हैं, जिससे भारतीय सांस्कृतिक एकता को बल मिलता है।
12 नदियों में कुंभ का आयोजन किया जाता
बृहस्पतिवार को 10000 से अधिक श्रद्धालुओं ने अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम स्थल पर आस्था की डुबकी लगाई। इस दौरान श्रद्धालुओं ने अपने पितरों का पिंडदान कर उनके मोक्ष की कामना की। सुबह पांच बजे से ही श्रद्धालु केशव प्रयाग में स्नान के लिए जुटने लगे थे। श्रद्धालुओं ने स्नान करने के बाद सरस्वती मंदिर के दर्शन भी किए। पूरे दिनभर भीम पुल से केशव प्रयाग तक जाने वाला पैदल रास्ता श्रद्धालुओं से भरा रहा। उड़ीसा से पुष्कर कुंभ में स्नान के लिए पहुंचे कामेश्वर राव का कहना है कि वे पहली बार पुष्कर कुंभ में शामिल हुए। 12 साल बाद यह संयोग बना है। केशव प्रयाग में स्नान करने के बाद पितरों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान किया। उन्होंने बताया कि देशभर की 12 नदियों में कुंभ का आयोजन किया जाता है। बदरीनाथ धाम से महज़ तीन किलोमीटर आगे स्थित भारत के पहले गांव माणा में इन दिनों एक दिव्य और दुर्लभ आध्यात्मिक आयोजन हो रहा है- पुष्कर कुंभ। अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम पर केशव प्रयाग में 12 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद फिर से कुंभ की शुरुआत हुई है। इस आयोजन का खास महत्व है। यह दक्षिण भारत की वैष्णव परंपरा से जुड़ा है, जिसमें विशेष रूप से दक्षिण भारत के श्रद्धालु भाग लेते हैं और इस बार भी वह बड़ी संख्या में यहां पहुंच रहे हैं। धर्माधिकारियों का मानना है कि पुष्कर कुंभ जैसे आयोजनों के माध्यम से दक्षिण और उत्तर भारत की वैदिक परंपराएं एक-दूसरे में समाहित होती हैं, जिससे भारतीय सांस्कृतिक एकता को बल मिलता है।
