*🌞~ आज का हिन्दू पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक – 5 जून 2024*
*⛅दिन – बुधवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2081*
*⛅अयन – उत्तरायण*
*⛅ऋतु – ग्रीष्म*
*🌤️अमांत – 23 गते ज्येष्ठ मास प्रविष्टि*
*🌤️राष्ट्रीय तिथि – 14 वैशाख मास*
*⛅मास – ज्येष्ठ*
*⛅पक्ष – कृष्ण*
*⛅तिथि – चतुर्दशी शाम 07:54 तक तत्पश्चात अमावस्या*
*⛅नक्षत्र – कृतिका रात्रि 09:16 तक तत्पश्चात रोहिणी*
*⛅योग- सुकर्मा रात्रि 12:36 जून 6 तक तत्पश्चात धृति*
*⛅राहु काल – दोपहर 12:16 से दोपहर 01:59 तक*
*⛅सूर्योदय – 05:16*
*⛅सूर्यास्त – 07:16*
*⛅दिशा शूल – उत्तर दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:29 से 05:11 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त – कोई नहीं*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:17 जून 6 से रात्रि 12:59 जून 6 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण – विश्व पर्यावरण दिवस*
*⛅विशेष – चतुर्दशी के दिन स्त्री-सहवास और तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹विश्व पर्यावरण दिवस 05 जून 2024🔹*
*🌹हमारे पूजनीय वृक्ष – आँवला🌹*
*🔹आँवला खाने से आयु बढ़ती है । इसका रस पीने से धर्म का संचय होता है और रस को शरीर पर लगाकर स्नान करने से दरिद्रता दूर होकर ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।*
*🔹जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं।*
*🔹मृत व्यक्ति की हड्डियाँ आँवले के रस से धोकर किसी भी नदी में प्रवाहित करने से उसकी सदगति होती है ।*
*(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, का.मा. 12.75)*
*🔹प्रत्येक रविवार, विशेषतः सप्तमी को आँवले का फल त्याग देना चाहिए । शुक्रवार, प्रतिपदा, षष्ठी, नवमी, अमावस्या और सक्रान्ति को आँवले का सेवन नहीं करना चाहिए ।*
*🔹आँवला-सेवन के बाद 2 घंटे तक दूध नहीं पीना चाहिए ।*
*🔸बेल (बिल्व)🔸*
*🔹स्कंद पुराण के अनुसार रविवार और द्वादशी के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए । इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं ।*
*🔹जिस स्थान में बिल्ववृक्षों का घना वन है, वह स्थान काशी के समान पवित्र है ।*
*🔹बिल्वपत्र छः मास तक बासी नहीं माना जाता ।*
*🔹चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति और सोमवार को तथा दोपहर के बाद बिल्वपत्र न तोड़ें ।*
*🔹40 दिन तक बिल्ववृक्ष के सात पत्ते प्रतिदिन खाकर थोड़ा पानी पीने से स्वप्न दोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है ।*
*🔹घर के आँगन में बिल्ववृक्ष लगाने से घर पापनाशक और यशस्वी होता है । बेल का वृक्ष उत्तर-पश्चिम में हो तो यश बढ़ता है, उत्तर-दक्षिण में हो तो सुख शांति बढ़ती है और बीच में हो तो मधुर जीवन बनता है ।*
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