
*~ हिन्दू पंचांग ~
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*दिनांक – 02 अगस्त 2024*
*दिन – शुक्रवार*
*विक्रम संवत् – 2081*
*अयन – दक्षिणायन*
*ऋतु – वर्षा*
*अमांत – 18 गते श्रावण मास प्रविष्ट*
*राष्ट्रीय तिथि – 11आषाढ़ मास*
*मास – श्रावण*
*पक्ष – कृष्ण*
*तिथि – त्रयोदशी दोपहर 03:26 तक तत्पश्चात चतुर्दशी*
*नक्षत्र – आर्द्रा प्रातः 10:59 तक तत्पश्चात पुनर्वसु*
*योग – हर्षण प्रातः 11:45 तक तत्पश्चात वज्र*
*राहु काल – प्रातः 10:42 से दोपहर 12:23 तक*
*सूर्योदय – 05:36*
*सूर्यास्त – 07:10*
*दिशा शूल – पश्चिम दिशा में*
*ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:44 से 05:28 तक*
* अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:19 से दोपहर 01:12*
*निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:24 अगस्त 03 से रात्रि 01:08 अगस्त 03 तक*
* व्रत पर्व विवरण – श्रावण मासिक शिवरात्रि, सर्वार्थ सिद्धि योग ( प्रातः 10:59 से प्रातः 06:11 जुलाई 03 तक)*
*विशेष – त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है। चतुर्दशी के दिन स्त्री-सहवास और तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*दंडवत प्रणाम का महत्व
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*ईश्वर की भक्ति के लिए अपने भीतर के सभी नकारात्मक तत्वों को हमें त्यागना पड़ता है और खुद को ईश्वर के चरणों में समर्पित करना होता है । ऐसा हम तभी कर सकते हैं जब हमारे भीतर मौजूद अभिमान हमारे अंतर्मन से निकल जाए । इसलिए शष्टांग प्रणाम के बढ़ावा दिया गया है ।*
*दंडवत प्रणाम कैसे करते हैं ?
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*अपने शरीर को दंडवत मुद्रा में लाते हुए सिर, हाथ, पैर, जाँघे, मन, ह्रदय, नेत्र और वचन को मिलकर लेट कर प्रणाम करें। अष्ट अंगों में दोनों पाँव, दोनों घुटने, छाती, ठुण्डी और दोनों हथेलियाँ शामिल हैं । इस प्रकार के प्रणाम को हम ‘दण्डवत प्रणाम’ इसलिए भी कहते हैं ।*
*अष्टांग दंडवत नमस्कार करने से लाभ
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* 1. दंडवत प्रणाम करने से व्यक्ति जीवन के असली अर्थ को समझ पाता है और आगे की दिशा में बढ़ पाता है ।*
* 2. व्यक्ति के भीतर समान भाव की प्रवृत्ति जागृत होती है और अभिमान खत्म हो जाता है ।*
* 3. दंडवत प्रणाम करने से अहम नष्ट होता है, ईश्वर के निकट पहुंचने का रास्ता है दंडवत प्रणाम ।*
* 4. मन में दया और विनम्रता जैसे भाव पनपने लगते हैं ।*
* 5. आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक है अष्टाङ्ग नमस्कार ।*
* 6. मसल्स के स्टिम्युलेशन और एक्टिव प्रयोग से पीठ मजबूत होने लगती है ।*
* 7. व्यक्ति अपने शरीर में ऊर्जा महसूस करने लगता है ।*
* 8. पाचन क्रिया में संतुलन बनाये रखने में लाभकारी है ।*
*स्त्रियों को दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करना चाहिए ?*
*’धर्मसिन्धु’ नामक ग्रंथ में इसका उत्तर हमें मिलता है, जिसमें स्पष्ट तौर पर निर्देश दिया गया है-*
*‘ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्रामं च पुस्तकम् ।*
*वसुन्धरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं।।’*
*अर्थात् – ब्राह्मणों का पृष्ठभाग, शंख, शालिग्राम, धर्मग्रंथ एवं स्त्रियों का वक्षस्थल यदि प्रत्यक्ष रूप से भूमि का स्पर्श करते हैं तो हमारी पृथ्वी इस भार को सहन नहीं कर सकती है । यदि पृथ्वी इस असहनीय भार को सहन कर भी लेती है तो वह इस भार को डालने वाले से उसकी अष्ट-लक्ष्मियों का हरण कर लेती है ।*
*स्त्रियां ऐसे करें प्रणाम :
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*स्त्रियां दंडवत प्रणाम के बजाय घुटनों के बल बैठकर अपने मस्तक को भूमि से लगाकर प्रणाम कर सकती हैं ।*