उत्तराखंड डेली न्यूज़: ब्योरो
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में आई आपदा के बाद धराली गांव के लोग गहरे सदमे में हैं। आपदाग्रस्त धराली में डॉक्टरों की टीम रोजाना 100 लोगों को देख रही है। गांव के तीस फीसदी लोग एंजायटी और एडजस्टमेंट डिसआर्डर से पीड़ित हैं।धराली आपदा में सबकुछ गंवा देने वाले लोग गहरे सदमे में हैं। उनके मन मस्तिष्क पर आपदा के गहरे जख्म हैं। डॉक्टरों के पास पहुंच रहे लोगों में से तीस फीसदी एंजायटी और एडजस्टमेंट डिसऑर्डर से पीड़ित हैं। किसी का बीपी बढ़ा हुआ है तो किसी को नींद ही नहीं आ रही। कोई रात को डर रहा है तो कोई आपदा की ही बात बार बार दोहरा रहा है। ऐसे कई लोग हैं जो बार-बार यह सोच कर सिहर उठते हैं कि यह हादसा दोबारा न हो जाए।देहरादून से विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम धराली में ही कैंप कर रही है। सर्जन डॉ. परमार्थ जोशी, निश्चेतक डॉ. संजीव कटारिया, मनोचिकित्सक डॉ. रोहित गोंदवाल से ‘हिन्दुस्तान’ ने बातचीत की। उन्होंने बताया कि आपदा ग्रस्त क्षेत्र में छह अगस्त से एक होटल में कैंप लगाया गया है। रोजाना ओपीडी में औसतन सौ ग्रामीण आ रहे हैं। इसके अलावा गंगोत्री से लौट रहे लोगों की भी स्क्रीनिंग की जा रही है। 25 से 30 फीसदी ऐसे लोग हैं, जो मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। उन्हें घबराहट, बेचैनी, बीपी बढ़ने, बार बार घटना को याद करने, अचानक रोना, नींद में कमी जैसी समस्याएं देखी जा रही है। इनकी काउंसिलिंग के साथ जरूरी दवाएं दी जा रही हैं। इसके अलावा बच्चों में खांसी, जुकाम, डायरिया की समस्या हो गई है।35-50 वर्ष के लोग ज्यादा,डॉक्टरों के मुताबिक अधिकांश प्रभावित लोग की उम्र 35 से 50 साल के बीच है। ये ऐसे लोग हैं, जिनका जीवन धराली में ही बीता और मेहनत करके सबकुछ कमाया, अब आपदा में सब तबाह हो गया और कुछ के अपने भी लापता है।घबराहट से पेट खराब
डॉ. जोशी के मुताबिक गंगोत्री से पैदल लौट रहे लोगों की सांस फूल रही है। उन्हें घबराहट की शिकायत है। बुरी तरह थक रहे हैं, बुखार, बदन दर्द और कुछ को डायरिया भी हो गया है। हर्षिल पीएचसी में अब तक तीस लोगों को भर्ती किया गया है।
वीडियो बनाने वाले युवक को नींद नहीं आ रही
जिस युवक ने आपदा का वीडियो बनाया, वह नहीं सो पा रहा है। डॉक्टरों ने उसे जब देखा तो उसने रात को अचानक से डर जाने एवं नींद नहीं आने की शिकायत की।दोहरा रहे आपदा की बात,एक 45 वर्षीय व्यक्ति डॉक्टरों के पास लाए गए। वह लगातार आपदा के बारे में बात कर रहे हैं। उनका पूरा जीवन गांव में बीता, मेहनत करके घर बनाया, अब उनके कुछ परिजन भी लापता हैं। इसलिए मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। डॉक्टरों ने उन्हें कुछ दवाएं दी हैं।
छह माह रह सकती है दिक्कत
मनोचिकित्सक डॉ. रोहित गोंदवाल के मुताबिक बड़ी आपदा या हादसे का सामना करने वाले लोगों में इस तरह के डिसऑर्डर होते हैं। घबराहट, बेचैनी, मन उदास, डर जाना, नींद कम आना, चिड़चिड़ापन, गुस्सा आदि की समस्या होती है। दवाएं देने पर सात से दस दिन में सुधार होता है। कुछ लोगों में छह माह तक भी दिक्कत रह सकती है।
