उत्तराखंड डेली न्यूज़ :ब्योरो
बात गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी की है तो उसमें पधारे सभी कवि साहित्य प्रेमियों को नमन। सुना है कि उत्तराखंड से भी साहित्य कर्मियों को भी आमंत्रित किया गया। हम भी बहुत लंबे समय से गढ़वाली कुमाऊनी के साहित्यिक रूप के लिए काम कर रहे हैं। मेरी 24 पुस्तकों में से दो पुस्तकें एक गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी अकादमी द्वारा और एक हिंदी अकादमी द्वारा प्रकाशित की गई। शायद मेरा नाम भी अकादमी के साहित्यकारों की सूची में होगा। हां एक बात अवश्य है कि मैं गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी की अलग-अलग खेमों में बांटने का विरोधी हूं। आज उत्तराखंड एक राज्य के रूप में स्थापित है जहां गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी के अलावा भी ग्यारह लोक भाषाएं हैं। हमारा मानना है कि उत्तराखंड के नाम से भी उत्तराखंडी भाषा होनी चाहिए। जिस तरह कई लोक भाषाओं के शब्दों के सामंजस्य से हिंदी प्रतिपादित की गई उसी तरह उत्तराखंड की सभी लोक भाषाओं के समान शब्दों आधारित उत्तराखंडी भाषा प्रतिपादित की जानकारी चाहिए जिसे कक्षा एक से दसवीं तक लागू किया जाए।
यह दो दिवसीय सम्मेलन शायद सरकारी बजट को समायोजित करने किया गया है। हमें यह मालूम है कि अब बीजेपी की सरकार है जिसमें हमारे समाज कुछ नेताओं की भूमिका इस कार्यक्रम के आयोजन में आमंत्रित करने कवि साहित्यकारों की सूची अकादमी को दी गई होगी।
मेरा मानना है कि यह उन साहित्यकारों के साथ अकादमी का सौतेला व्यवहार है जिनके संबंध में जानते हुए भी उन्हें आमंत्रित नहीं किया।
हम अकादमी के पदाधिकारियों कर्मचारियों को भी दोषी नहीं ठहरा सकते। क्यों कि अवश्य ही वह किसी दबाव में होंगे। हां यह अवश्य कहूंगा कि अकादमी के सचिव श्री संजय गर्ग को बार-बार फोन करने व संदेश देने के बाद उन्होंने जवाब देने की जरूरत नहीं समझी।
मेरा पूरा जीवन गढ़वाली कुमाऊनी की सेवा करते आज 65 वर्ष पार कर चुका है। मैं अपनी इस पीड़ा को अपने पूरे साहित्य और कार्यों के संबंध में दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता और देश के प्रधानमंत्री आदरणीय श्री दामोदरदास मोदी तक अवश्य पहुंचाऊंगा। गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी अकादमी दिल्ली द्वारा गढ़वाली कुमाऊनी भाषा पर वर्षों से कार्यरत एक वरिष्ठ साहित्यकार को अपने कार्यक्रमों से दूर रखना एक यक्ष प्रश्न खड़ा करता है। अकादमी के इस व्यवहार की भर्त्सना होनी चाहिए।
