उत्तराखंड डेली न्यूज़: ब्योरो
श्रीनगर। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के चौरास परिसर स्थित भौतिक विज्ञान विभाग की ओर से हिमालयी क्षेत्र में एरोसोल, वायु गुणवत्ता एवं जलवायु परिवर्तन पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी (आईएमसीएएसी-2025) के दूसरे दिन प्रतिभागियों एवं विशेषज्ञों ने पर्यावरण चुनौतियों से जुड़े विविध पहलुओं पर मंथन किया। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. आलोक सागर गौतम ने बताया कि दिन भर चले इन सत्रों में देश-विदेश के वैज्ञानिकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने भाग लिया। प्रथम सत्र में आमंत्रित वक्ता डॉ. रंजीत कुमार ने वैश्विक वायु संकटः पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का सेतु निर्माण विषय पर कहा कि वायु प्रदूषण केवल एक तकनीकी या वैज्ञानिक समस्या नहीं है, बल्कि यह हमारी जीवनशैली, संस्कृति और ज्ञान परंपरा से गहराई से जुड़ा हुआ विषय है। उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि प्रत्येक वर्ष लगभग 70 लाख लोगों की मृत्यु वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के कारण होती है। डॉ. कुमार ने पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के समन्वय को सतत समाधान की कुंजी बताया। डॉ. दीन मणि लाल ने अपने शोध व्याख्यान एरोसोल-बादल-बिजली की परस्पर क्रिया में एरोसोल और वायुमंडलीय प्रक्रियाओं के जटिल संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि इंडो-गैंगेटिक मैदान में एरोसोल की मात्रा में वृद्धि से बादलों की सूक्ष्म संरचना, वर्षा की प्रक्रिया और बिजली की गतिविधियों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। उनके अध्ययन में यह भी पाया गया कि अधिक एरोसोल सांद्रता से वर्षा में विलंब और स्थानीय आंधी-तूफान की तीव्रता में वृद्धि होती है। मौके पर डॉ. जितेंद्र बुटोला ने मानवजनित जलवायु परिवर्तन के गहन प्रभावों और उनके समाधान, डॉ. विक्रम एस. नेगी ने हिमालयी वनस्पतियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, डॉ. विजय लक्ष्मी, बढ़ते तापमान और घटती बर्फबारी से गढ़वाल हिमालय की अल्पाइन वनस्पतियों के गंभीर संकट पर व्याख्यान दिया। मौके पर प्रो. एमएस नेगी, डा. मनीष निगम, डॉ. विजयकांत पुरोहित, डा. कपिल पंवार, डॉ. नेहा आदि मौजूद रहे।
