उत्तराखंड डेली न्यूज़: ब्योरो
किस्सा दिल्ली का’ सीरीज के पार्ट-22 में आज हम दिल्ली की ‘ हौज ए शम्सी’झील की रोचक कहानी बता रहे हैं। यह झील इल्तुतमिश ने बनवाई थी।राजधानी दिल्ली की गलियों में कई ऐतिहासिक कहानियां छिपी हुई हैं। इन्ही में एक है हौजखास इलाके की ‘हौज-ए-शम्सी’। इसे हौजखास झील भी कहा जाता है। ये दिल्ली की सबसे पुरानी झील है। 800 साल पुरानी इस झील की कहानी और भी ज्यादा रोचक है। सुल्तान इल्तुतमिश ने पैगंबर के आदेश पर इसे बनवाया था। पैगंबर उनके सपने में आए और इस झील का रास्ता दिखाया।पैगंबर का संदेश और उभरा चमत्कार कहा जाता है कि गुलाम वंश के तीसरे सुल्तान शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के सपने में पैगंबर मुहम्मद प्रकट हुए। पैगंबर के घोड़े का खुर जहां पड़ा, वहां पानी का सोता उभर आया। सुबह होते ही इल्तुतमिश अपने आध्यात्मिक गुरु ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के साथ उस जगह पहुंचे। यह जगह महरौली के जंगलों में थी। वहां सचमुच एक झरना फूट पड़ा था। उत्साहित सुल्तान ने तुरंत एक विशाल जलाशय खोदने का आदेश दिया। नाम पड़ा ‘हौज-ए-शम्सी’, यानी ‘सूर्य की झील’, जो सुल्तान के नाम ‘शम्सुद्दीन’ (सूर्य का धर्म) से प्रेरित था। ये 1230 ईस्वी की वो घटना थी, जब एक सपना हकीकत बन गया। आज भी झील के बीचोंबीच लाल बलुआ पत्थर का वो गुंबद वाला मंडप खड़ा है, जहां बुराक के कथित खुर के निशान को पवित्र मानकर संरक्षित किया गया है।
कभी थी शहर की जीवनरेखा
इल्तुतमिश ने इसे दिल्ली की जनता के लिए बनाया, ताकि बारिश का पानी इकट्ठा हो और साल भर प्यास बुझे। मूल रूप से लगभग 5 एकड़ में फैली ये आयताकार झील शहर की जल आपूर्ति की धुरी बनी। सुल्तान के दरबारियों और रईसों के लिए ये एक मनोरंजन का अड्डा थी, जहां नावें लहरातीं, शामें गीत-संगीत से रंगीन होतीं। 14वीं सदी में यात्री इब्न बतूता ने अपनी डायरी में इसे ‘मीठे पानी की नदी जैसा’ कहा, जो दो मील लंबी और एक मील चौड़ी थी। बाद में लोदी वंश ने इसके किनारे जहाज महल बनवाया, जो यात्रियों के विश्राम स्थल के रूप में इस्तेमाल होती। मुगल काल में तो ये और भी रंगीन हो गई। जहांगीर और शाहजहां के जमाने में फव्वारे लगे और बहादुर शाह द्वितीय ने मंडप को और भव्य बनाया।धीरे-धीरे चमक पड़ गई फीकी
समय के साथ ये चमक भी फीकी पड़ गई। 18वीं-19वीं सदी में मुगल साम्राज्य के पतन के साथ झील पर कचरा जमा होने लगा और 20वीं सदी तक ये दिल्लीवालों के लिए डंपिंग ग्राउंड बन गई। आसपास के झरने भी खंडहरों में तब्दील हो गए। लेकिन उम्मीद की किरण 2023 में दिखी, जब स्थानीय निवासियों ने ‘प्राइड ऑफ शम्सी’ नामक समूह बनाया। एएसआई और एनजीओ सीड्स के साथ मिलकर उन्होंने सफाई अभियान चलाया। एरेटर्स, बायो-फिल्टर्स और फव्वारे लगाकर पानी को साफ किया गया। ये अब प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा ठिकाना है। किंगफिशर से लेकर व्हाइट थ्रोटेड किंगफिशर तक, सैकड़ों प्रजातियां यहां ठहरती हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इसे संरक्षित जल विरासत घोषित किया है।
