उत्तराखंड डेली न्यूज: ब्योरो
यमुना के रेत पर बनी ताजमहल जैसी भव्य इमारत आज भी दुनिया को हैरान करती है। शाहजहां की मुमताज से बेपनाह मोहब्बत की निशानी ताजमहल 1653 में बनकर तैयार हुआ।विश्व प्रसिद्ध ताजमहल जितना अपनी अद्भुत भव्यता के लिए जाना जाता है, उतना ही उसके निर्माण से जुड़ी अनकही कहानियां भी इतिहास के पन्नों में अमिट स्थान रखती हैं। ऐसी ही एक दास्तान ताजमहल के पूर्वी गेट के पास स्थित हाथी खाना से जुड़ी है। मुगलकालीन काल की इस संरचना में ताजमहल निर्माण में जुटे करीब 1,000 हाथियों को ठहराया और प्रशिक्षित किया जाता था।इतिहासकार राजकिशोर राजे शर्मा के अनुसार 17वीं शताब्दी में जब बादशाह शाहजहां ने ताजमहल का निर्माण शुरू कराया, तब भारी-भरकम पत्थरों को उठाने के लिए कोई आधुनिक क्रेन या मशीन उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में पूरा निर्माण कार्य इन विशालकाय हाथियों के दम पर संपन्न हुआ। हाथी खाना ही वह स्थान था, जहां इन हाथियों को आराम, भोजन और देखभाल उपलब्ध कराई जाती थी।
मकराना से ताजमहल तक का सफर
इतिहासकार के अनुसार राजस्थान के मकराना से लाए गए सफेद संगमरमर और अन्य देशों से लाए गए पत्थर को पहले नदी मार्ग से यमुना किनारे स्थित हाथी घाट तक पहुंचाया जाता था। इसके बाद हाथी इन पत्थरों को खींचकर निर्माण स्थल तक ले जाते थे। सबसे कठिन कार्य विशाल शिलाखंडों को ऊंचाई तक ले जाना था। इसके लिए निर्माण स्थल के चारों ओर मिट्टी का एक विशाल ढलान (रैंप) बनाया गया था, जिस पर चलकर हाथी पत्थरों को ऊपरी मंजिलों तक पहुंचाते थे।
एएसआई कर रहा संरक्षण
यह ऐतिहासिक स्थल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की ओर से वर्ष 2018 से संरक्षित है। वर्ष 2018 के पहले यह खंडहर का रूप ले चुका था। अब समय–समय पर इसके जीर्णोद्धार और संरक्षण का कार्य किया जाता है। हाथी खाना न सिर्फ ताजमहल के निर्माण की अनूठी प्रक्रिया को उजागर करता है, बल्कि मुगलकालीन परिवहन तकनीक और वास्तुकला की दक्षता का भी जीवंत प्रमाण है।
पर्यटकों के लिए लगा है ताला
हाथी खाना पर्यटकों के लिए अभी बंद है। पास में रह रहे लोगों का कहना है कि इसका ताला साफ-सफाई या कोई विशेष व्यक्ति आता है तो उसके लिए खोला जाता है। पुरातत्व विभाग के अधिकारी ने बताया कि हाथी खाना तक पहुंचने के लिए सही रास्ता नहीं हाेने की वजह से इसे बंद रखा जाता है। इसके लिए रास्ता वन विभाग की जमीन से होकर जाता है। कई बार प्रयास किया गया कि इस भूमि से रास्ता निकल जाए लेकिन अभी तक संभव नहीं हो पाया है।
