उत्तराखंड डेली न्यूज :ब्योरो
बागेश्वर और आसपास के पहाड़ी इलाकों में लाल चावल की मांग तेजी से बढ़ रही है. पारंपरिक तरीके से उगाया गया यह चावल सर्दियों में ऊर्जा और गर्माहट देने के लिए बेहद फायदेमंद है. इसमें प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट, फाइबर और आयरन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो पाचन, रोग प्रतिरोधक क्षमता और शरीर की सेहत के लिए लाभकारी हैं. यह चावल अब शहरों और ऑनलाइन बाजारों में भी पसंद किया जा रहा है.ठंड बढ़ने के साथ ही उत्तराखंड के गांवों में लाल चावल की मांग तेजी से बढ़ रही है. पारंपरिक खेती से तैयार होने वाला यह चावल खासतौर पर सर्दियों में ऊर्जा का बेहतरीन स्रोत माना जाता है. स्थानीय लोग बताते हैं कि लाल चावल शरीर को भीतर से गर्म रखने में मदद करता है, और लंबे समय तक पेट भरा रखता है. इसमें मौजूद प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर ठंड के मौसम में पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं. पहाड़ी परिवारों में नाश्ते, दोपहर और रात के भोजन में लाल चावल का इस्तेमाल आज भी बड़ी संख्या में किया जाता है, जो इसे ठंड का असली सुपरफूड बनाता है.बागेश्वर के आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. ऐजल पटेल ने लोकल 18 को बताया कि लाल चावल में आयरन, विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, मैग्नीशियम और भरपूर फाइबर पाया जाता है, जो इसे सफेद चावल से कई गुना पौष्टिक बनाता है. यह चावल रक्त में हीमोग्लोबिन बढ़ाने, पाचन सुधारने और शरीर से टॉक्सिन निकालने में मददगार है. खास बात यह है कि इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होने से यह डायबिटीज़ मरीजों के लिए भी बेहतर माना जाता है. उत्तराखंड में सेहत के प्रति जागरूक लोगों की डाइट में लाल चावल तेजी से अपनी जगह बना रहा है. खासकर उन लोगों में जो प्राकृतिक और जैविक खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता देते हैं.उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल मंडल में लाल चावल पीढ़ियों से उगाया जाता रहा है. बागेश्वर, पिथौरागढ़, चम्पावत, टिहरी, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिलों के कई गांव इस विशिष्ट धान की खेती के लिए मशहूर हैं. पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेतों में बारिश के पानी पर आधारित खेती से उगने वाला लाल चावल अपनी प्राकृतिक गुणवत्ता के लिए जाना जाता है. यह धान ठंडे मौसम और पहाड़ी मिट्टी में सबसे अच्छा फलता है. यही कारण है कि इसका स्वाद, खुशबू और पौष्टिकता मैदानी इलाकों में मिलने वाले किसी भी चावल से अलग मानी जाती है.बागेश्वर और आसपास के बाजारों में लाल चावल की कीमत इसकी किस्म और गुणवत्ता के आधार पर 120 रुपये से 180 रुपये प्रति किलो तक रहती है. वहीं जैविक खेती से तैयार किया गया पहाड़ी लाल चावल 200 रुपये किलो तक आसानी से बिक जाता है. पिछले कुछ वर्षों में शहरों और बड़े राज्यों से लाल चावल की मांग तेजी से बढ़ी है. ऑनलाइन ऑर्डर भी बढ़ रहे हैं, जिससे किसानों को बेहतर दाम मिलने लगे हैं. पोषण मूल्य और स्वाद के कारण यह चावल अब केवल पहाड़ी इलाकों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि देशभर में लोकप्रिय हो रहा है.सर्दियों में बनने वाली लाल चावल की खीर पहाड़ों का खास पकवान माना जाता है. इसे पारंपरिक तरीके से धीमी आंच पर दूध में पकाया जाता है ताकि चावल का असली स्वाद निखरकर आए. पकने के बाद इसमें गुड़ या शहद, देसी घी, इलायची, काजू-बादाम मिलाकर इसे और पौष्टिक बनाया जाता है. यह खीर शरीर को ऊर्जा देने के साथ–साथ गर्माहट भी देती है. गांवों में इसे विशेष अवसरों, त्योहारों, मेहमानों के स्वागत और बच्चों को पौष्टिक आहार के रूप में भी खिलाया जाता है. सर्द मौसम में यह खीर लगभग हर घर में जरूर बनती है।
