उत्तराखंड डेली न्यूज़ :ब्योरो
उत्तराखंड में वन गुर्जर बिताते हैं खानाबदोश जिंदगी, गर्मियों में पहाड़ तो सर्दियों में तराई में करते हैं प्रवास, परमिट के लिए हो रही परेशानीदेहरादून:हर साल की तरह इस बार भी खानाबदोश वन गुर्जर हिमालय क्षेत्र की तरफ प्रवास पर निकल रहे हैं, लेकिन उत्तरकाशी के गोविंद पशु विहार में वन गुर्जर को एंट्री न मिलने की वजह से वन गुर्जर और उनके मवेशी सड़कों पर भटकने को मजबूर हैं. पिछले साल भी काफी मशक्कत के बाद इन वन गुर्जरों को गोविंद विहार वन क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति मिली थी. इस बार भी वन गुर्जरों के सामने उसी तरह की दिक्कतें आ रही है.
खानाबदोश वन गुर्जर समाज के अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्था ‘हिमालय सेंटर फॉर कम्युनिटी एंड रूरल डेवलपमेंट’ के अध्यक्ष अवधेश शर्मा ने बताया कि वन गुर्जर के साथ यह समस्या कोरोना के बाद लगातार आ रही है. वन गुर्जर पिछले कई सदियों से इसी तरह से खानाबदोश जीवन जीते हैं. ये सर्दियों में हिमालय के निचले इलाके यानी शिवालिक में आ जाते हैं और गर्मियों में ऊंची हिमालय क्षेत्र की तरफ प्रवास करते हैं!अवधेश शर्मा ने बताया कि ‘वन गुर्जर एक ऐसा समुदाय है, जिनका कहीं स्थायी ठिकाना नहीं होता है. वो आदिकाल से इसी व्यवस्था पर जीते आ रहे हैं. यह हिमालय इकोलॉजी के लिए भी बेहद जरूरी होता है, लेकिन अब लगातार नए-नए नियमों से इस पारंपरिक व्यवस्था में अड़चन आ रही है. जिस वजह से ये लोग ठोकर खाने को मजबूर हैं.उन्होंने बताया कि आलम ये है कि विकासनगर से लेकर पुरोला तक जगह-जगह पर वन गुर्जर और उनके मवेशी सड़कों के किनारे दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. न तो वहां पर मवेशियों के लिए चारा है और ना हीं पीने के लिए पानी. ऐसे में कई मवेशी मरने की कगार पर है. ऐसे में इन वन गुर्जरों की सुध लेने की जरूरत है!डेयरी प्रोडक्ट की आपूर्ति करते हैं वन गुर्जर:बता दें कि वन गुर्जर सर्दियों के मौसम में शिवालिक रेंज में मोहंड़, शाकंभरी और बड़कला इलाके में रहते हैं तो वही गर्मी आते ही ये लोग ऊंचाई वाले इलाकों में चले जाते हैं. उत्तरकाशी के सेंचुरी एरिया समेत अन्य जिलों के ऊंचाई इलाकों में ये खानाबदोश गुर्जर अपने मवेशियों के साथ प्रवास करते हैं. इस दौरान डेयरी प्रोडक्ट की आपूर्ति भी उच्च हिमालय क्षेत्र में रहने वाले गुर्जरों के माध्यम से होती हैउत्तराखंड में हिमालयी इकोलॉजी से जुड़ी वन गुर्जरों की यह व्यवस्था पारंपरिक तौर से चली आ रही है तो वहीं कई सालों पहले इन वन गुर्जरों के परमिट भी सरकारों की ओर से बनाए गए थे. जो उसके बाद रिन्यू नहीं हो पाए हैं, लेकिन अब वन गुर्जर परेशान हैं. कई जगहों पर तो स्थानीय लोग इनका विरोध भी कर रहे हैं. वन गुर्जरों का कहना है कि या तो उन्हें स्थायी तौर पर व्यवस्था की जाए या फिर पारंपरिक तौर से प्रवास करने की आसानी से अनुमति दी जाएवन गुर्जर समुदाय के लोगों को हर साल सेंचुरी एरिया में जाने के लिए परमिट दिया जाता है. इसके लिए वन विभाग की ओर से पूर्व में परमिट भी बनाए गए हैं. परमिट दिखाने और संबंधित जरूरी कागजात दिखाने के बाद ही वन गुर्जरों को सेंचुरी एरिया में जाने दिया जाता है. अभी तक 19 आवेदन आए हैं. उनसे सभी जरूरी दस्तावेजों की मांग की गई है. जो भी सही डॉक्यूमेंट जमा करेगा, उसे परमिट दिया जाएगा.” – निधि सेमवाल, उपनिदेशक, गोविंद पशु विहार वन्यजीव अभयारण्य
गोविंद वन्य जीव विहार के उपनिदेशक निधि सेमवाल की मानें तोविस्थापित गुर्जर भी परमिशन मांग रहे हैं. उन्हें परमिशन नहीं जारी किया. क्योंकि, उन्हें स्थायी ठिकाना यानी विस्थापित कर दिया गया है!
“कुछ वन गुर्जरों को विस्थापित कर दिया गया है यानी कि उन्हें किसी एक जगह पर जमीन देकर बसाया गया है. इनमें से कुछ लोगों की ओर से सेंचुरी एरिया में जाने की परमिशन मांगी जा रही है. जिन्हें वन विभाग परमिशन नहीं देगा. क्योंकि, उन्हें वन विभाग ने एक जगह पर विस्थापित कर दिया है.”
