उत्तराखंड डेली न्यूज़: ब्योरो
कुमाऊं की रक्षक मानी जाने वालीं नंदा-सुनंदा की मूर्तियां बनकर तैयार हो चुकी हैं। इन मूर्तियों को बनाने का अनोखा तरीका है। लोग बताते हैं कि मूर्तियां अपना रुप खुद लेती है और उसी में आशीर्वाद छिपा होता है।उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित नंदा-सुनंदा देवी के मंदिर और उनके ऐतिहासिक मेले को लेकर वर्षों से स्थानीय श्रद्धालुओं में गहरी आस्था है। हर साल की तरह नैनीताल में नंदा-सुनंदा मेला चल रहा है। मां नंदा-सुनंदा मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के बाद श्रद्धालुओं ने 31 अगस्त को मूर्तियों के दर्शन किए। स्थानीय मान्यता है कि नंदा-सुनंदा देवी को उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र का संरक्षक हैं। इन मूर्तियों को बनाने में विशेष तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है। लोगों में विश्वास है कि मूर्तियां खुद ही अपना स्वरुप लेती हैं, कभी हंसी तो कभी दुख। मूर्तियों का यह भाव आने वाले समय और आशीर्वाद को दर्शाता है।मूर्तियां बनाने की अनोखी परंपरा,नंदा-सुनंदा देवी की मूर्तियां कदली वृक्ष से बनाई जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार, कदली वृक्ष या केले का पेड़ पवित्र माना जाता है। भक्त एक दिन पहले, यानी 29 अगस्त को यात्रा शुरू करते हैं और रात में उस गांव में ठहरते हैं, जहां मूर्तियों के लिए केले का पेड़ लाया जाना है। गांव का चयन महोत्सव आयोजन करने वाली संस्था श्रीराम सेवक सभा एक मीटिंग में करती है।इस साल जोलीकोट गांव के पास चोपड़ा गांव से केले का पेड़ लाया गया। इस दौरान भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। जिस स्थान पर यात्रा शुरू होती है, वहां कुछ पौधे लगाए जाते हैं। अगले दिन, यानी 30 तारीख को वापस लौटते समय, रास्ते में माता के मंदिरों में केले के पेड़ को रखा जाता है और पूजा-अर्चना की जाती है। नगर भ्रमण के बाद, टीम मूर्तियों को नैना देवी मंदिर ले जाती है, जहां विधिपूर्वक पूजा-पाठ किया जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद शाम से कारीगरों की टीम मूर्तियों को तैयार करने में जुट जाती है। इन मूर्तियों को बनाने में बांस, रुई और कपड़े का भी उपयोग किया जाता है और देर रात 12 बजे तक मूर्तियां तैयार हो जाती हैं।मेले के आखिरी दिन डोला यात्रा,एक सितंबर को हवन के बाद कन्यापूजन दो को सुंदरकांड व तीन को महाभंडारा 4 को नंदा चालीसा, दीपदान कार्यक्रम, 5 सितंबर को पूजन के बाद डोले को नगर भ्रमण कराया जाएगा, इसके बाद मूर्ति विसर्जन किया जाएगा। डोला यात्रा पूरे शहर में निकाली जाती है। पुष्पवर्षा होती है और लोग रो-रोकर विदाई देते हैं। ऐसी मान्यता है कि एक बार आपने इस डोला को देख लिया तो मनोकामना पूरी हो जाती है।
