
*~ हिन्दू पंचांग ~
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*दिनांक – 01 फरवरी 2025*
*दिन – शनिवार*
*विक्रम संवत् – 2081*
*अयन – उत्तरायण*
*ऋतु – शिशिर*
*अमांत – 19 गते माघ मास प्रविष्टि*
*राष्ट्रीय तिथि – 11 माघ मास*
*मास – माघ*
*पक्ष – शुक्ल*
*तिथि – तृतीया सुबह 11:38 तक तत्पश्चात चतुर्थी*
*नक्षत्र – पूर्व भाद्रपद रात्रि 02:33 फरवरी 02 तक, तत्पश्चात उत्तर भाद्रपद*
*योग – परिघ दोपहर 12:25 तक, तत्पश्चात शिव*
*राहु काल – प्रातः 09:51 से प्रातः 11:11 तक*
*सूर्योदय – 07:08*
*सूर्यास्त – 05:53*
*दिशा शूल – पूर्व दिशा में*
*ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:36 से 06:28 तक*
*अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:31 से दोपहर 01:16 तक*
*निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:27 फरवरी 02 से रात्रि 01:10 फरवरी 02 तक*
*व्रत पर्व विवरण – गणेश जयंती, विनायक चतुर्थी*
*विशेष – तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है व चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*तिल के औषधीय प्रयोग
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*काले तिल चबाकर खाने व शीतल जल पीने से शरीर की पर्याप्त पुष्टि हो जाती है। दाँत मृत्युपर्यन्त दृढ़ बने रहते हैं।*
*एक भाग सोंठ चूर्ण में दस भाग तिल का चूर्ण मिलाकर 5 से 10 ग्राम मिश्रण सुबह शाम लेने से जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है।*
*तिल का तेल पीने से अति स्थूल (मोटे) व्यक्तियों का वजन घटने लगता है व कृश (पतले) व्यक्तियों का वजन बढ़ने लगता है। यह कार्य तेल के द्वारा सप्तधातुओं के प्राकृत निर्माण से होता है।*
*तैलपान विधिः सुबह 20 से 50 मि.ली. गुनगुना तेल पीकर,गुनगुना पानी पियें। बाद में जब तक खुलकर भूख न लगे तब तक कुछ न खायें।*
*अत्यन्त प्यास लगती हो तो तिल की खली को सिरके में पीसकर समग्र शरीर पर लेप करें।*
*वार्धक्यजन्य हड्डियों की कमजोरी उससे होने वाले दर्द में दर्दवाले स्थान पर 15 मिनट तक तिल के तेल की धारा करें।*
*पैर में फटने या सूई चुभने जैसी पीड़ा हो तो तिल के तेल से मालिश कर रात को गर्म पानी से सेंक करें।*
*पेट मे वायु के कारण दर्द हो रहा हो तो तिल को पीसकर, गोला बनाकर पेट पर घुमायें।*
*वातजनित रोगों में तिल में पुराना गुड़ मिलाकर खायें।**
*एक भाग गोखरू चूर्ण में दस भाग तिल का चूर्ण मिलाके 5 से 10 ग्राम मिश्रण बकरी के दूध में उबाल कर, मिश्री मिला के पीने से षढंता∕नपुंसकता (Impotency) नष्ट होती है।*
*काले तिल के चूर्ण में मक्खन मिलाकर खाने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) नष्ट हो जाती है।*
*तिल की मात्राः 10 से 25 ग्राम ।*
*विशेषः देश, काल, ऋतु, प्रकृति, आयु आदि के अनुसार मात्रा बदलती है। उष्ण प्रकृति के व्यक्ति, गर्भिणी स्त्रियाँ तिल का सेवन अल्प मात्रा में करें। अधिक मासिक-स्राव में तिल न खायें।*