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उत्तराखंड डेली न्यूज़ :ब्योरो
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प्रकृति ने अपनी असीम बुद्धि से प्रत्येक मनुष्य को एक अलग पहचान दी है – हमारी उंगलियों के निशान से लेकर आंखों की पुतलियों तक, हमारे अनुभव से लेकर विचारों तक, हमारी प्रतिभाओं से लेकर उपलब्धियों तक। मानवीय विशिष्टता के बारे में यह गहन सत्य हमारे समाज की विशेषता रही है और हमारी शिक्षा प्रणाली को इस विशेषता को प्रतिबिंबित करना चाहिए। प्रत्येक बच्चे में कुछ जन्मजात प्रतिभा होती है, कुछ शैक्षिक प्रतिभा से चमकते हैं, अन्य रचनात्मकता के लिए तत्पर होते हैं, कई अन्य एथलेटिक और पेशेवर कौशल से युक्त होते हैं। इस विशिष्टता को दर्शाते हुए, स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था, “शिक्षा मनुष्य में पहले से मौजूद पूर्णता की अभिव्यक्ति है।”
एक बच्चे की प्राकृतिक प्रतिभा को निखारना और उसे उसकी पसंद के शैक्षणिक और पाठ्येतर गतिविधियों में रचनात्मक रूप से शामिल करना हमारे शैक्षणिक संस्थानों के सामने कठिन चुनौतियां रही हैं। शिक्षकों और नीति निर्माताओं के रूप में हमारी भूमिका एक बच्चे की अनूठी प्रतिभा को विकसित करना है, जिससे वह चुने हुए लक्ष्य में श्रेष्टता प्राप्त कर सके। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 ने प्रतिभा को परिभाषित करने और उसको विकसित करने के तरीके में एक विलक्षण बदलाव किया है। यह एक दार्शनिक ढांचा है जो वास्तव में हमारे प्रत्येक बच्चे में मौजूद विशिष्टता की सूक्ष्म रूपरेखा का वर्णन कर सकता है जो हमारे देश की उन्नति में योगदान देता है।