
*~ हिन्दू पंचांग ~
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*दिनांक – 20 दिसम्बर 2024*
*दिन – शुक्रवार*
*विक्रम संवत् – 2081*
*अयन – दक्षिणायन*
*ऋतु – हेमन्त*
* अमांत – 6 गते पौष मास प्रविष्टि*
* राष्ट्रीय तिथि – 29 मार्गशीर्ष मास*
*मास – पौष*
*पक्ष – कृष्ण*
*तिथि – पञ्चमी प्रातः 10:48 तक, तत्पश्चात षष्ठी*
*नक्षत्र – मघा रात्रि 03:47 दिसम्बर 21 तक, तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी*
*योग – विष्कम्भ शाम 06:12 तक, तत्पश्चात प्रीति*
*राहु काल – प्रातः 10:59 से दोपहर 12:15 तक*
*सूर्योदय – 07:07*
*सूर्यास्त – 05:21*
*दिशा शूल – पश्चिम दिशा में*
*ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:30 से 06:23 तक*
*अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:16 से दोपहर 12:59 तक*
*निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:11 दिसम्बर 21 से रात्रि 01:04 दिसम्बर 21 तक*
*विशेष – पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है व षष्ठी को नीम-भक्षण (पत्ती फल खाने या दातुन मुंह में डालने) से नीच योनियों की प्राप्ति होती है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*शीतकाल में बलसंवर्धनार्थ : मालिश
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*शीतकाल बलसंवर्धन का काल है । इस काल में सम्पूर्ण वर्ष के लिए शरीर में शक्ति का संचय किया जाता है । शक्ति के लिए केवल पौष्टिक, बलवर्धक पदार्थों का सेवन ही पर्याप्त नहीं है अपितु मालिश (अभ्यंग), आसन, व्यायाम भी आवश्यक हैं )*
*उपयुक्त तेल : मालिश के लिए तिल का तेल सर्वश्रेष्ठ माना गया है । यह उष्ण व हलका होने से शरीर में शीघ्रता से फैलकर स्त्रोतसों की शुद्धि करता है । यह उत्तम वायुनाशक व बलवर्धक भी है । स्थान, ऋतू, प्रकृति के अनुसार सरसों, नारियल अथवा औषधसिद्ध तेलों (आश्रम में उपलब्ध आँवला तेल) का भी किया जा सकता है । सर के लिए ठंडे व अन्य अवयवों के लिए गुनगुने तेल का उपयोग करें ।*
*मालिश काल : मालिश प्रात:काल में करनी चाहिए । धुप की तीव्रता बढ़ने पर व भोजन के पश्चात न करें । प्रतिदिन पुरे शरीर की मालिश सम्भव न हो तो नियमित सिर व पैर की मालिश तथा कान, नाभि में तेल डालना चाहिए ।*
*सावधानी : मालिश के बाद ठंडी हवा में न घूमें । १५ – २० मिनट बाद सप्तधान्य उबटन या बेसन अथवा मुलतानी मिट्टी लगाकर गुनगुने पानी से स्नान करें । नवज्वर, अजीर्ण व कफप्रधान व्याधियों में मालिश न करें । स्थूल व्यक्तियों में अनुलोम गति से अर्थात ऊपर से नीचे की ओर मालिश करें ।*