
उत्तराखंड डेली न्यूज़:ब्योरो

उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सलाहकार प्रोफेसर जेएस रावत के नेतृत्व में हुए फील्ड सर्वे में यह चिंताजनक तथ्य सामने आए हैं। जलवायु परिवर्तन के अलावा नदियों में अवैज्ञानिक तरीके से खनन और अन्य मानवजनित कारण कोसी की बर्बादी की प्रमुख वजह रही हैं।
उत्तराखंड में कोसी नदी की विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई है। एक्सपर्ट को इस बात की चिंता है कि अगर हालात जल्द ही नहीं सुधरे तो नदी लुप्त तक हो सकती है। अल्मोड़ा जिले में कौसानी के धारपानी से निकलकर कई नगर, कस्बों और गांवों को सींचते और पानी पिलाते हुए आगे बढ़ने वाली कोसी नदी का अस्तित्व संकट में है।1992 तक गर्मियों में 790 लीटर प्रति सेकंड के प्रवाह से बहने वाली इस नदी का बहाव अब महज 48 लीटर प्रति सेकंड रह गया है। उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सलाहकार प्रोफेसर जेएस रावत के नेतृत्व में हुए फील्ड सर्वे में यह चिंताजनक तथ्य सामने आए हैं। जलवायु परिवर्तन के अलावा नदियों में अवैज्ञानिक तरीके से खनन और अन्य मानवजनित कारण कोसी की बर्बादी की प्रमुख वजह रही हैं।कोसी भले ही एक नदी है, लेकिन इससे उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के भी कई शहर समृद्ध होते हैं। कुमाऊं में यह नदी सोमेश्वर, अल्मोड़ा, रामनगर होते हुए ऊधमसिंह नगर तक जाती है और आगे उत्तर प्रदेश में रामगंगा में मिल जाती है। 1965 में भारतीय सर्वेक्षण विभाग के भूपत्र के अनुसार कोसी का दायरा अल्मोड़ा जिले में 225.6 किलोमीटर में फैला था। उन्होंने अपनी टीम के साथ कोसी और उसकी तमाम सहायक नदियों का फील्ड सर्वे किया, जिसमें भयावह तस्वीर सामने आई।
नदियों का दायरा 41.5 किलोमीटर में सिमटा
बीते 59 सालों में कोसी और उसकी सहायक नदियों का दायरा महज 41.5 किलोमीटर में सिमट चुका है। गर्मियों में 21 में से 20 सहायक नदियां सूख जाती हैं। प्रो. रावत के मुताबिक रिचार्ज जोनों और सहायक नदियों को नहीं बचाया गया, तो कोसी 2040 के बाद लुप्त हो सकती है।